वतन मेरा, वतन के हम, वतन पे जां निसार है ।
धड़कनों में है वतन, हमें वतन से प्यार है ।
सुबह की रश्मियां मुकुट, सजाती देश के लिए
भोर, घट में भर के स्वर्ण, लाती देश के लिए
युगों-युगों से सांझ केसरी श्रृंगार कर रही
निशा जमीं पे चांदनी, बिछाती देश के लिए
मां भारती पे शीश अपना, झुकता बार-बार है ।
वतन मेरा, वतन के हम, वतन पे जां निसार है ।
भिन्न-भिन्न में अभिन्नता, की बात है यहां
मेरे देश, जैसा देश, और बोलो है कहां ?
झिलमिला रहा है देश, आज आसमान में
देश धमनियों में अपनी, रक्त बन के बह रहा
राष्ट्र प्रेम की दिलों में, बह रही बयार है ।
वतन मेरा, वतन के हम, वतन पे जां निसार है ।
स्वलिखित एवं मौलिक रचना
उमा विश्वकर्मा
कानपुर, उत्तर प्रदेश